ग़ज़ल : हुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे
हुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे तसव्वुर मैं करूँ जन्नत का मुझको घर दिखाई दे बिछड़कर अपनों से
Read Moreहुमकते खेलते बच्चों का वो मंज़र दिखाई दे तसव्वुर मैं करूँ जन्नत का मुझको घर दिखाई दे बिछड़कर अपनों से
Read Moreकोई सूरत हो ज़िम्मेदारियों की याद रहती है मुझे हर वक़्त अपनी बेटियों की याद रहती है बड़े शहरों में
Read Moreखुशी में ग़म में ढलती जिन्दगानी एक जैसी है जुदा हैं नाम सबके और कहानी एक जैसी है नदी दरिया
Read Moreदिलों में चाह होती है कभी ख़ंजर नहीं होते हमारे गाँव में ये बदनुमा मंज़र नहीं होते वो खुश रहते
Read Moreवफ़ा जिनमें न हो वो रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं अगर कमज़ोर हो बुनियाद तो घर टूट जाते हैं न
Read Moreबेटे छत खिड़की दरवाज़े और घर की अँगनाई बिटिया सारे रिश्ते फूल चमेली और भीनी पुरवाई बिटिया क़तरा क़तरा मोती
Read Moreरगों में जैसे कुहरे की घटाएँ डोलती हैं अजब बेचैनियाँ दिल में हवाएँ घोलती हैं हमारे शहर ने कितनी तरक़्क़ी
Read Moreबुजुर्गों का अदब रखती है गाँवों में नज़र अब भी बड़ों के सामने झुक जाते हैं छोटों के सर अब
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