सिलवटें
पड़ रही है मन पर उम्र की सिलवटें मैं चाह कर भी नवयौवना सी सज नहीं पाती मन के किसी
Read Moreरोज मरती है ख्वाहिशें अल्हड़ नादान बचपन की एक अजीब सा डर पीछा करती कुछ निगाहें अनहोनी का भय सहम
Read Moreतन्हा होती हूँ जब अपने आप से बातें करती हूँ कभी सोचती हूँ कि तुम न होते तो… कोने में
Read Moreफिर आई गर्मी की छुट्टीयाँ घर का माहौल बदला है माहौल दिन भर खाली सोते रहते बिगाडे़ सम्बन्ध है रहे
Read More“तुम्हें हमेशा चाहा वही मिला फिर भी मन में इतना रोष क्यों? ये कैसी पेंटिंग बनाई तुमने,लगा जैसे बेटियाँ आत्मघात
Read More“आप अपनी माँ को समझाते क्यों नहीं ,बुढा़पे में भी मियां बीवी प्रेमी युगल की तरह घूमने का कार्यक्रम बना
Read Moreउठी आन्धी ऐसी मन में छिड़ गये मन के तार फिर आज भी जुगनू की तरह करती रही बस तेरा
Read Moreलो फिर मिटा दे भेदभाव खिला दे अमन के फूल फिर बदल रही है वक्त की नजाकत लो मिला ले
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