बार-बार घड़ी को देखते हुए रेखा उकता उठी। “बारह बजने को आये,नहीं आना तो यह भी नहीं कि एक फ़ोन ही
Read Moreमनहरण घनाक्षरी छंद 1. छाये रहे घनश्याम, आये नहीं घनश्याम जाने किस ओर गये, जाने कहाँ बरसे अमिय प्रेम सागर,
Read Moreकुण्डलिया छंद:- एक बला की सादगी, दूजे चंचल नैन। दोनों मिलकर लूटते, कर देते बेचैन।। कर देते बेचैन, तुम्हारे बिंदिया,
Read Moreसाँझ के धुंधलके में.. “ध्यान-पूजा” माँ को मुझसे ज्यादा भैया से लगाव था। किन्तु भाभी ने माँ से कभी ताल-मेल
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