ग़ज़ल
बनकर के आग तन-बदन में समाने के लिए मचल उठा है वो मेरे अंजुमन में आने के लिए रास आने
Read Moreबजती नहीं कोई झंकार जाते जातेटूटते हैं दिल के अब तार जाते जातेवक़्त ए रुखसती हो चली अब तो यूँ बस
Read Moreसन्नाटों में हैं चींखें ,लुट जाने का डर है बताओ तो मेरे दोस्तों ये कैसा शहर है चारों तरफ हाहाकार
Read Moreबजती नहीं कोई झंकार जाते जातेटूटते हैं दिल के अब तार जाते जातेवक़्त ए रुखसती हो चली अब तो यूँ बस
Read Moreदिल से दर्द रुखसत होने को है हमें ग़मों से फुर्सत होने को है दुश्मनों के खेमे में दोस्ती के चर्चे कुछ जीने
Read MoreRajiv Chaturvedi जी दादा का एक शेर पढ़ा और पढ़कर बहुत अच्छा लगा और शब्द उतरते चले गये“जिन हवाओं को हक़
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