छंद मुक्त रचना : सताती गर्मी
तपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों
Read Moreतपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों
Read Moreआओ खेलें चिडिया फुदक फुदक ,कुछ कहती चिड़िया पंखों मे , दम भरती , चिड़िया मुन्ना बोला गीत सुनाओ मुन्नी
Read Moreऐसी पिला यारब कि जीने का सामान हो जाए ये मिरी जिंदगी भी मुझ पर मेहरबान हो जाए ।
Read Moreपोल के नीचे अक्सर वह दिखती पुरानी किताबों के कुछ पन्ने कुछ जोड़ तोड़ कर टूटे फूटे शब्द बोल बोल
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