आलोक उन्मुख देखो
कुहासे की चादर में, गुदगुदाती ठंड देखो, अधर शीत को छूकर,अभिभूत हुए हैं देखो, स्वर्ण किरनें प्यारी,कन्दीय बनी हैं देखो,
Read Moreकुहासे की चादर में, गुदगुदाती ठंड देखो, अधर शीत को छूकर,अभिभूत हुए हैं देखो, स्वर्ण किरनें प्यारी,कन्दीय बनी हैं देखो,
Read Moreसब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में पर्वत, शीत हवाएँ, परिंदे दुपके आकाश में रही सजती धरातल भी प्रात में
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