तुम्हारी भौजाई ने घुघुरी बनाया है, आ जाना
जब से उन्होंने कनफुसकी की है, तब से सारा देश सन्न है! कयासों का बाजार गर्म है। अखबारी और चैनली
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Read Moreफागुन में पहले प्रकृति बौराती थी। फिर आम्र मंजरियां बौराती थीं। फिर पोपले मुंह और पिलपिले शरीर वाले सत्तर-पचहत्तर साल
Read Moreमैं सोकर ही उठा था कि दस-बारह लड़कों ने मेरा घर घेर लिया। मैंने सवालिया निगाहों से उनकी ओर
Read Moreकहते हैं कि मानो तो देव, नहीं तो पत्थर तो हैं ही। मानिए तो बहुत बड़ी उलझन है, न मानिए,
Read Moreअब तो पता ही नहीं चलता कि कब मुआ वसंत आया और चला गया। दरवाजे पर, खेतों में, बागों में,
Read Moreएक दिन मैं ऑफिस से कुछ जल्दी घर चला आया। मैंने देखा कि मेरा तेरह वर्षीय बेटा और उसका हमउम्र
Read Moreजी हां! यह आपको ही तय करना है कि आपको कैसा भारत चाहिए? नेता, अधिकारी, मंत्री-संत्री क्या कहते हैं, वे
Read Moreअगर आपसे पूछा जाए कि पुराण कितने हैं, तो आप अपने बचपन में रटा हुआ ‘अष्टादश पुराणेषु..’ सुना देेंगे। जी
Read Moreबाप तो आखिरकार बाप ही होता है। बेटा बेटा होता है। बाप के आगे बेटे की क्या बिसात है। अगर
Read Moreनया साल व्यंग्यकारों के लिए बड़ा चौचक रहने वाला है। नए वर्ष में व्यंग्यकारों की कुंडली के सातवें घर में
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