ग़ज़ल : जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे
जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे… जो कहते
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Read Moreरोज की तरह आज भी मैं दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन से कश्मीरी गेट तक के लिए मेट्रो में चढ़ा लगभग-लगभग
Read Moreहर कदम पर मुझे दबाने का प्रयास किया जा रहा है फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है! सुरक्षित
Read Moreआज के आधुनिक युग में सोशल मीडिया एक क्रांति के रूप में उभर कर सामने आया है। फिर चाहे वह
Read More16 लोकसभा के लिए देश के सभी सांसदों ने शपथ ले ली है. सत्र आरम्भ हो गया है. सदन में
Read Moreमेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया भूखी रह के भी, भरे पेट का बहाना बना लिया. सर
Read Moreजब होके आस-पास भी खला होगा तभी तो रोने में फिर इक मज़ा होगा. आँखें तेरी देखेंगी जब तड़पता
Read Moreअपनी ही अंजुमन में मैं अंजाना सा लगूं बिता हुआ इस दुनिया में फ़साना सा लगूं. गाया है मुझको
Read Moreआज सब कुछ जैसे बदलता जा रहा है, आदमी आदमी का दुश्मन बन बैठा है. हर एक दूसरे को गिराकर
Read Moreआज अचानक से जहन में एक महान साहित्यकार, कवि, ग़ज़लकार ‘दुष्यंत कुमार’ की एक पंक्ति आ गयी. उस ग़ज़ल की
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