” —————– क्रुद्ध हैं जंगल ” !!
लांघ दी सीमाएं हमने , क्रुद्ध है जंगल | घट रहा विस्तार , हो रहा शमन | भयभीत हम ,
Read Moreलांघ दी सीमाएं हमने , क्रुद्ध है जंगल | घट रहा विस्तार , हो रहा शमन | भयभीत हम ,
Read Moreतेरी किलकारी से गूंजे , घर का कोना कोना ! सबकी आंखों में बसता है , तेरा रूप सलोना
Read Moreमनोहारी छवि तेरी , लाड़ लड़ाए ऐसा ! भूल जाऊँ दुख सारा , स्पर्श मिले तब ऐसा ! तुझमें
Read Moreआज शरारत आंखों में है , अधरों पर मुस्कान ! दिल है बेईमान ज़रा सा , अधरों पर मुस्कान
Read Moreपुलक रहा है तन मन ऐसा , लहर लहर लहराऊँ !! पैर नहीं है आज जमीं पर , पंछी
Read Moreशिशु जितने हिस्से में आये , मां ने सीने से चिपकाये ! नेह सदा वारा है उन पर ,
Read Moreअँखियों में फिर आस जगी है , हँसकर मनवा करे ठगी है ! आस ले रही आज हिलोरें ,
Read Moreथके थके से हैं दो नयना , रात जगे से हैं दो नयना ! अभी हौंसले पस्त नहीं है
Read Moreरंग न डालो मुझ पर ऐसे , बलिहारी मैं जाऊँ ! भीगे तन मन और वसन सब , खड़ी खड़ी
Read Moreहमें निमंत्रण राहें देती , यह ना अपने हाथ ! चाहत है या मजबूरी है , यह ना अपने
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