दोहा इक्कीसा
पतझड़ और बसंत सा,इस जीवन का रूप। जब जैसा मौसम रहे,मानें उसे अनूप। ऋतु बसंत अब अंत है,बढ़ने लगा है
Read Moreपतझड़ और बसंत सा,इस जीवन का रूप। जब जैसा मौसम रहे,मानें उसे अनूप। ऋतु बसंत अब अंत है,बढ़ने लगा है
Read Moreकभी इकरार की होली ,कभी इंकार की होली। इधर श्रृंगार की होली,उधर है प्यार की होली । गुलाबी गाल की
Read Moreभाई हो तो भरत सा,राम कथा की शान। भ्रात प्रेम में कर दिया,सत्ता सुख बलिदान। भाई हो तो भरत सा,धीर
Read Moreकिरदार कई हैं उसी, किरदार के पीछे। नफरत छिपाये रखते हैं,जो प्यार के पीछे। माना कि चमचमाता है,विकास चहुँ ओर।
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