आक्षेप मत कर
ऐ पुरुष आक्षेप मत करकि निकलती हूँ मैंकम कपड़े पहन करक्या कभी देखा खुद कोबजारों में, दुकानों परअधनंग कटि के
Read Moreऐ पुरुष आक्षेप मत करकि निकलती हूँ मैंकम कपड़े पहन करक्या कभी देखा खुद कोबजारों में, दुकानों परअधनंग कटि के
Read Moreफौजी तुम कितने निष्ठुर ।लाते हो जब टुकड़ों मेंकलेजे के टुकड़ों कोतिरंगे मे लपेटकरकैसे बज्र बना लेतेअपना उरफौजी तुम कितने
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