कविता : औरत
औरत ! जिंदगी भर भट्टीखाने में धुएं में रोटियां सेंकती हुई बच्चों की परवरिश में गंवा देती है जिंदगी मर्द
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Read Moreआदमी जब अपने सपनों को तिलांजलि देकर किसी औरत के लिए बुनता है एक नया सपना तब वह बन जाता
Read Moreइक हिलोर तेरी यादों की सुने अंतस के सुप्त कणों में रह-रह कर उठती है इक हिलोर अतीत के कब्र
Read Moreआदमी को चाहिए दो जोड़ी कपड़े भरपेट भोजन और सिर पर छप्पर जब यह मिल जाता है तो आदमी को
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