गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 20/05/202520/05/2025 ग़ज़ल आवरण में है छुपे विष के चेहरेकोई कैसे जान पाए भेद गहरे। एक छटपटाहट गहराई में गर्त हैतभी किनारो से Read More
गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 03/03/202503/03/2025 ग़ज़ल जहाँ मौत के बाद के सपने बेचे जाते हैवो किस्से यहाँ मजहब कहलाए जाते है। जीते जी दो घूट भी Read More
गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 28/06/2023 गीतिका इसकी कट रही, उसकी गुजर रही है जिंदगी जीने वालों की कमी बहोत है। दौड़ दौड़ कर कितना दौड़ोगे आखिर Read More
गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 30/10/202205/11/2022 ग़ज़ल शोर के भीतर सन्नाटे सुनना सीख रहा हूँ उलझे उलझे धागों को बुनना सीख रहा हूँ। सांसो तक पर पहरा Read More