गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 28/06/2023 गीतिका इसकी कट रही, उसकी गुजर रही है जिंदगी जीने वालों की कमी बहोत है। दौड़ दौड़ कर कितना दौड़ोगे आखिर Read More
गीतिका/ग़ज़ल डॉ. दिलीप बच्चानी 30/10/202205/11/2022 ग़ज़ल शोर के भीतर सन्नाटे सुनना सीख रहा हूँ उलझे उलझे धागों को बुनना सीख रहा हूँ। सांसो तक पर पहरा Read More