गीत
कई सुनहरे स्वप्न, मात्र मृगतृष्णा ठहरे । कई सघन षडयंत्र, कई आरोप मनगढ़े।काँटों वाले मुकुट,बिना अपराध सर चढ़े।पीड़ा के उपहार,रक्तमय
Read Moreवन में मृग के अनगिन दुश्मन । हर पल शंका में रहता मन । व्याघ्र,भेड़िये, अजगर, मानव, सब हैं रिपु,
Read Moreपीर विश्वासघात की ऐसे ।खुला आकाश, वस्त्र जर्जर हो,और अगहन की रात हो जैसे। जेठ की जलती दोपहर जैसे।महामारी का
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