लघुकथा – मान भी जाओ
नौ बज चुके थे ।बड़ी सी ताला लगा दोनों निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर । कागज पलटते कब स्ट्रीट
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Read Moreपिता के संस्कार और शिक्षा के कारण पुत्र भी घर को एक मंदिर ही मानता था। इसलिए वक्त के साथ
Read Moreकरीब दो वर्षों बाद तूलिका को बेटे शुभम और पति नरेश के साथ एक लंबी यात्रा पर जाने का अवसर
Read Moreबिल्कुल सरल स्वभाव , छोटा कद, सरलता की मूरत और मधुरता का रस लेकिन जब वह बोलती तो उसका व्यवहार
Read Moreलाख व्यस्तता के बीच भी अवकाश देख नीलू कुछ खरीदारी की इच्छा जाहिर की जिससे रमेश ना भी न कर
Read Moreललन बचपन से ही बड़े भावुक और सरल किस्म का इंसान था। क्षण भर में ही भावुकता उसके दिल में
Read Moreबनी बनाई चीजों को तोड़ना और फिर जोड़ के देखना, छोटे भाई के खिलौने को लेकर दूर भाग जाना, कभी
Read Moreरोज कमाना, रोज खाना, कुछ इस तरह चल रही थी जिंदगी ! सूरज की लालिमा के साथ उठना, भोजन पानी
Read Moreपूतनी गांव में पली- बढ़ी एक साधारण परिवार की इकलौती बेटी थी। उसका छरहरा वदन ,साधारण एवं सरल व्यवहार हर
Read Moreगंगा प्रसाद बचपन से ही एक रईस दबंग खानदान से ताल्लुक रखता था । वह पुरखों की बनाई हुई चाय
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