कहानी – निस्वार्थ सेवा
सर्दियों का मौसम था ।सूरज की मीठी किरणें रोम- रोम को महका रही थी। छुट -पुट दुकाने भी लग ही
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Read Moreमौसम का मिजाज बदल रहा था। एक तरफ चिलचिलाती गर्मी तो दूसरी तरफ बारिश ने अपना कब्जा जमा रखा था।
Read Moreनौ बज चुके थे ।बड़ी सी ताला लगा दोनों निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर । कागज पलटते कब स्ट्रीट
Read Moreपिता के संस्कार और शिक्षा के कारण पुत्र भी घर को एक मंदिर ही मानता था। इसलिए वक्त के साथ
Read Moreकरीब दो वर्षों बाद तूलिका को बेटे शुभम और पति नरेश के साथ एक लंबी यात्रा पर जाने का अवसर
Read Moreबिल्कुल सरल स्वभाव , छोटा कद, सरलता की मूरत और मधुरता का रस लेकिन जब वह बोलती तो उसका व्यवहार
Read Moreलाख व्यस्तता के बीच भी अवकाश देख नीलू कुछ खरीदारी की इच्छा जाहिर की जिससे रमेश ना भी न कर
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Read Moreबनी बनाई चीजों को तोड़ना और फिर जोड़ के देखना, छोटे भाई के खिलौने को लेकर दूर भाग जाना, कभी
Read Moreरोज कमाना, रोज खाना, कुछ इस तरह चल रही थी जिंदगी ! सूरज की लालिमा के साथ उठना, भोजन पानी
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