कविता फ़िरदौस ख़ान 23/11/2021 पतझड़ कितना लुभावना होता है पतझड़ भी कभी-कभी बाग़ों में ज़मीं पे बिखरे सूखे ज़र्द पत्तों पर चलना कितना भला लगता Read More