कोई माँ देखे है रास्ता…
कोई माँ देखे है रास्ता, लौटे फूल कोई डाली पर कोई बच्चा देखे रास्ता, पिता का इस दिवाली पर ट्रेनों
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Read Moreदस रोज… दस गुलाबों की तरह थे महकते हुए दहकते हुए दस रोज यादों की नीली सी डायरी में सूखकर
Read Moreगाँव के एक रिपोर्टर ने न्यूसपेपर के एडिटर इन चीफ को फोन किया , “सर, एक बढ़िया स्टोरी है… जल
Read Moreहिन्दी दिन-ब- दिन बढ़ रही चिंता की कोई बात नहीं कोटि कोटि जनों की भाषा कोटि कोटि दिलों की भाषा
Read Moreबातें बदल बदल कर चेहरे बदल बदल कर पहचान छुप ना पाई परदे बदल बदल कर पिंजरे की जाँच की
Read Moreउम्र की सुराही से रिस रहा है लम्हा लम्हा बूँद बूँद और हमें मालूम तक नहीं पड़ता ….. कितनी स्मृतियाँ
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