कविता गोविन्द सूचिक 24/09/202424/09/2024 जिंदगी यूं ही जिंदगी यूं हीमुठ्ठी भर रेत की तरह,हाथों से फिसल रही,हम कुछ कह नहीं पाए,आगे बड़ती ही गई।हम सोचते ही रहेकदम Read More
कविता गोविन्द सूचिक 11/08/202411/08/2024 दौलत… बेटा दे न सका पिता की अर्थी को कांधा,किस काम आई ऐसी दौलत,जिसे विदेशों में कमाई।जिसने लुटा कर बनाया इंसान,बुढ़ापे Read More