कविता : वेदना
कुदरती पीड़ा “प्रसव वेदना” से स्त्री तो एक बार में मुक्त होकर अपने चेहरे पर उम्र भर मुस्करान ला लेती
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Read Moreमन की बात बताऊँ उस बहन को बहुत सुकून मिलता है जिसका भाई पापा को अपना पापा कहकर उनकी हिफाजत करता है
Read Moreबेमेल विवाह जैसी बदरंग जिन्दगी से शिकायत तभी तक होती हैं जब तक समझौता नही कर पाते! करते ही शिकायते अपने आप
Read Moreबेटा जो उम्मीदो पर खरा उतर जाए तो झुर्रिया अपने आप कम हो जाए और चेहरे पर बेसाख्ता हँसी आ
Read Moreबड़ी मुश्किल से सभाला है खुद को पैमाने तक लाकर! तू जो आ जाए तो कसम की लाज रह जाए!
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