झनकार है
बजे पैर पाजेब झनकार है तरूणी चले बीच मँझधार है सजी भौंह के बीच बिन्दी हरी नयन से किये काम
Read Moreदूर तलक अकेलापन अन्तःतल तक ध्वनि रहित रिक्तता स्नेह -लगाव का अभाव प्रेम की लालसा बेबस और लाचार पथराई आँखों
Read Moreदेश बदला देश का स्वरूप बदला मैकाले की आधार बनी शिक्षानीति का स्वरूप बदल गया गाँधी की बुनियादी शिक्षा का
Read Moreमधुर राग मधुर प्राणमय बन जाओ बहती सुगन्धित मारूत बन जाओ नया हास , नया मधुमास बन तुम जीवन को
Read Moreउसने कुल पंद्रह बसंत ही देखे थे कि पति ने परस्त्री के प्रेम – जाल में फँस कर उसे त्याग
Read Moreमास चैत्र चला आया ,ताप सूर्य का दग्धाने लगा सूखे सरोवर औ तालाब ,खग पंछी लगे अकुलाने ताँक -झाँक करे
Read Moreजीवन संध्या में दोनों एक दूसरे के लिए नदी की धारा थे। जब एक बिस्तर में जिन्दगी की सांसे गिनता
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