कविता : चाँद और बादल
धुंध की चादर पसारे धरा के रूप को सभाले धूप हो गई है गुलाबी मौसम अंगराई मारे बादल श्वेत परिधान
Read Moreधुंध की चादर पसारे धरा के रूप को सभाले धूप हो गई है गुलाबी मौसम अंगराई मारे बादल श्वेत परिधान
Read Moreविचरण करता हो जो पंछी , उन्मुक्त खुले आसमाँ में रहना पिजड़े में हर वक्त उसको कब भाता है पर
Read Moreझिलमिल बहार जगमगाहट से ज़ड़े सितारों में थी भीनी सी महक दूरियों का कायम सिलसिला अविराम था हृदय मेरा काँच
Read Moreयाद है तुम्हे वो सर्द रात तुम्हें कुछ याद हो न हो पर मुझे याद है सारी बातें अब तक ,आज
Read Moreप्रिय सुनो जी हूँ मैं गर्भ से भ्रूण पलता है तुम्हारा ही है करना मत हत्या बेटी तो क्या ✄♿♿♿✄✄
Read Moreदामन में मुँह छुपाये बैठे है अजब निराले कौतूक करके बैठे है पाक साफ बनते है सरेआम शोषण करते है
Read Moreसूरज का ना निकलना उपर से हाड कँपाने वाली ठन्ड बढ़ जाती है मेरी चिन्ता चूल्हे का सूना सूनापन उपर
Read Moreपूरे होने से पहले ही लग गया कोमा विराम और फुलस्टॉप खाक हो गये ख्वाब थक गये बेचारे ढो़गों की
Read Moreआ चलें दूर गगन हो करके मगनचाँद की चाल चलेप्यार की शरारत करेंतारों का श्रृंगार करेंआसमां से बात करेंचाँदनी का
Read More