छंदमुक्त काव्य
कूप में धूप मौसम का रूप चिलमिलाती सुबह ठिठुरती शाम है सिकुड़ते खेत, भटकती नौकरी कर्ज, कुर्सी, माफ़ी एक नया
Read Moreकूप में धूप मौसम का रूप चिलमिलाती सुबह ठिठुरती शाम है सिकुड़ते खेत, भटकती नौकरी कर्ज, कुर्सी, माफ़ी एक नया
Read Moreवाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना। मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।। नाचत गावत
Read Moreभारतीय परिवेश और भारतीयता अपने दायित्व का निर्वहन करना बखूबी जानती है। जहाँ तक आश्रमों की बात है अनेकों आश्रम
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