“गज़ल”
बह्र 221 2121 1221 212, काफ़िया- मोती, ओती स्वर, रदीफ़- उठा लिया “गज़ल” निकला था सीप से कहीं मोती उठा
Read Moreवेटिंग रूम, लघुकथा गर्मी का तपता हुआ महीना और कॉलेज के ग्रीष्मावकाश पर घर जाने की खुशी में रजिया और
Read More“कुंडलिया” अच्छे लगते तुम सनम यथा कागजी फूल। रूप-रंग गुलमुहर सा, डाली भी अनुकूल।। डाली भी अनुकूल, शूल कलियाँ क्यों
Read More“छंद मुक्त गीतात्मक काव्य” जी करता है जाकर जी लू बोल सखी क्या यह विष पी लू होठ गुलाबी अपना
Read Moreआधार छंद – सरसी (अर्द्ध सम मात्रिक) शिल्प विधान सरसी छंद- चौपाई + दोहे का सम चरण मिलकर बनता है।
Read More“सोशल मीडिया पर साहित्य- लाभ या हानि” “हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस बिधि हाथ”, बाबा तुलसी दास जी ने
Read More“कुंडलिया” वीरा की तलवार अरु, माथे पगड़ी शान। वाहेगुरु दी लाड़िली, हरियाली पहचान।। हरियाली पहचान, कड़ा किरपाण विराजे। कैसी यह
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