“गज़ल”
काफ़िया- आ स्वर, रदीफ़- रह गया शायद जुर्म को नजरों से छुपाता रह गया शायद व्यर्थ का आईना दिखाता रह
Read Moreखेती हरियाली भली, भली सुसज्जित नार। दोनों से जीवन हरा, भरा सकल संसार।। भरा सकल संसार, वक्त की है बलिहारी।
Read Moreकटना अपने आप का, देख हँस रहा वृक्ष। शीतल नीर समीर बिन, हाँफ रहा है रिक्ष।। हाँफ रहा है रिक्ष,
Read Moreकिस बिना पै कह दूँ कि मैं इक किसान हूँ जोतता हूँ खेत, पलीत करता हूँ मिट्टी छिड़कता हूँ जहरीले
Read Moreआती पेन्सल हाथ जब, बनते चित्र अनेक। रंग-विरंगी छवि लिए, बच्चे दिल के नेक॥ बच्चे दिल के नेक, प्रत्येक
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