“मुक्तक”
हे जगत के अन्नदाता भूख को भर दीजिये। हों सभी के शिर सु-छाया संग यह वर दीजिये। उन्नति के पथ
Read Moreसुनहु सखा तुम भ्राता बाली, महाबली था हुआ कुचाली नजर धरी परतिया मवाली, चहत वरण अनुजा बलशाली। सखा सहज कहती
Read Moreइंद्र धनुष की यह प्रभा, मन को लेती मोह हरियाली अपनी धरा, लोग हुये निर्मोह लोग हुये निर्मोह, मसल देते
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