“मुक्तक”
प्रदत शीर्षक- अमृत/सुधा/पियूष/अमीय/सोम/मधु/सुरभोग समानार्थी, दोहा मुक्तक चाहत अमृत धार मधु, देव दनुज सुरभोग प्याला विष पियूष जस, नीलकंठ संयोग त्राहि त्राहि
Read Moreगुरुवर साधें साधना, शिष्य सृजन रखवार बिना ज्ञान गुरुता नहीं, बिना नाव पतवार बिना नाव पतवार, तरे नहि डूबे दरिया
Read Moreभाग्य तो भाग्य है कर्म ही तो फल बाग है बारिश के जल जैसा थैली में भर पैसा ओढ़ ले
Read Moreसुबह की लाली लिए, अपनी सवारी लिए, सूरज निकलता है, जश्न तो मनाइए नित्य प्रति क्रिया कर्म, साथ लिए मर्म
Read Moreमात्रा भार-26 घास पूस लिए बनते छप्पर छांव देखे हैं हाथ-हाथ बने साथ चाह निज गाँव देखे हैं गलियां पगडंडी
Read Moreचित्र अभिव्यक्ति आयोजन चाहे काँटें पथर पग, तिक्ष्ण धार हथियार पुष्प प्रेम सर्वत्र खिले, का करि सक तलवार का करि
Read Moreप्रदत शीर्षक- अलंकार, आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर गहना भूषण विभूषण, रस रूप अलंकार बोली भाषा हो मृदुल, गहना हो
Read More( ढेल- मोरनी, टहूंको- मोर की बोली) नाचत घोर मयूर वन, चाह नचाए ढेल चाहक चातक है विवश, चंचल चित
Read Moreयह चार पदों(पंक्तियों मे) लिखा जाने वाला वार्णिक छंद है। 8/8/8/7 पर यति अर्थात प्रति पंक्ति 31 वर्ण, भाव प्रभाव
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