धर्म के ठेकेदार नहीं, अवाम को बेहतर व्यवस्था देने की जुगत करें!
देश की रीढ़ कृषि और भविष्य निर्माण करने वाली शिक्षा व्यवस्था दोनों की स्थिति नाजुक है। एक तरफ देश का
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Read Moreकहीं कुदाल से वार हो रहा, कहीं भीड़ टूट पड़ रहीं। यहीं नहीं कहीं लाठियां भी बरस रही। यह सब
Read Moreराजनीति और धर्म दोनों अलग-अलग है। फिर भी आज दोनों का सियासतदानों ने सम्मोहन सिर्फ इसलिए करवा दिया है, क्योंकि
Read Moreलोकतांत्रिक व्यवस्था के सात दशकों का दस्तूर रहा है। सियासतदानों की किताब का मुख्य पृष्ठ गांव, ग़रीब और किसान ही
Read Moreलोकतंत्र में राजधर्म की बात होती है। ऐसे में हम अपनी बात की शुरुआत हम दो बिंदु के ज़िक्र से
Read Moreअटल जी भारतीय राजनीति के सूर्य थे। अगर यह उपमा दी जाएं, तो शायद ही किसी का उस पर हस्तपेक्ष
Read Moreहम बेहतर और सुगम जीवन की चाह रखते हैं। लेकिन हम भौतिक सुख-सुविधाओं में इतने तल्लीन होते जा रहें, कि
Read Moreवैध और अवैध के बीच मानवीय संवेदना आकर अटकती दिख रही है। एक दृष्टिकोण से मान लिया जाएं, कि 40
Read Moreसमाज में बच्चें हाशिए पर है, लेकिन जो बच्चें आश्रय स्थलों में रहने को बेबस और लाचार हैं। वे पहले
Read Moreयुवा, राजनीति और बेरोजगारी। ये तीन शब्द हिंदी भाषा में अपना-अपना अर्थ और महत्व रखते हैं। पर किसी न किसी
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