सत्यार्थप्रकाश से वेदों के महत्व तथा मत-मतान्तरों की अविद्या का ज्ञान होता है
ओ३म् मनुष्य को यह ज्ञान नहीं होता है कि उसके लिये क्या आवश्यक एवं उचित है जिसे करके वह अपने
Read Moreओ३म् मनुष्य को यह ज्ञान नहीं होता है कि उसके लिये क्या आवश्यक एवं उचित है जिसे करके वह अपने
Read Moreओ३म् संसार में जानने योग्य यदि सबसे अधिक मूल्यवान कोई सत्ता व पदार्थ हैं तो वह ईश्वर व जीवात्मा हैं।
Read Moreओ३म् मनुष्य का जो ज्ञान होता है वह सत्य व असत्य दो कोटि का होता है। मनुष्य के कर्म भी
Read Moreओ३म् मनुष्य जीवन को उत्तम व श्रेष्ठ बनाने के लिये आत्मा को ज्ञान से युक्त करने सहित श्रेष्ठ कर्मों व
Read Moreओ३म् संसार में तीन मूल सत्तायें हैं जिन्हें हम ईश्वर, जीव तथा प्रकृति के नाम से जानते हैं। आकाश का
Read Moreओ३म् संसार की जनसंख्या का बड़ा भाग ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है और अपने ज्ञान व परम्पराओं के
Read Moreओ३म् मनुष्य एक मननशील प्राणी है। सभी मनुष्यों को परमात्मा ने मानव शरीर बनाकर उसमें पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म
Read Moreओ३म् हमारा यह संसार ईश्वर जीव तथा प्रकृति, इन तीन सत्ताओं व पदार्थों से युक्त है। अनन्त आकाश का भी
Read Moreओ३म् संसार में स्थूल व सूक्ष्म दो प्रकार के पदार्थ होते हैं। स्थूल पदार्थों को सरलता से देखा जा सकता
Read Moreओ३म् मनुष्य चेतन एवं अल्पज्ञ सत्ता है। इसका शरीर जड़ पंच-भौतिक पदार्थों से परमात्मा द्वारा बनाया व प्रदान किया हुआ
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