Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ मत-मतान्तरों की अविद्या दूर करने के लिये लिखा था

ओ३म् ऋषि दयानन्द सरस्वती जी का सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ देश देशान्तर में प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने इस ग्रन्थ को

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जिस प्रयोजन के लिये परमात्मा ने जीवन दिया है उसे करना ही धर्म एवं कर्तव्य है

ओ३म् मनुष्य जन्म लेता है परन्तु उसे यह पता नहीं होता कि उसके जन्म लेने व परमात्मा के जन्म देने

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संसार को ईश्वर की सत्ता का परिचय सर्वप्रथम वेदों से मिला है

ओ३म् हमारा यह संसार 1.96 अरब वर्षों से अधिक समय पूर्व बना था। तब से यह जीवों के आवागमन व

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यम नियमों का पालन किये बिना भक्ति व उससे लाभ होना असम्भव

ओ३म् मनुष्य ईश्वर का बनाया हुआ एक चेतन प्राणी है जिसके पास पांच ज्ञान एवं पांच कर्म इन्द्रियों से युक्त

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मनुष्य का आत्मा ही ईश्वर प्राप्ति व प्रार्थनाओं की पूर्ति का धाम है

ओ३म् मनुष्य की अपनी अपनी आवश्यकतायें एवं इच्छायें हुआ करती हैं। वह उनकी पूर्ति के लिये प्रयत्न भी करते हैं।

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ईश्वर में आस्था सत्य व ज्ञान से युक्त होने पर ही सार्थक होती है

ओ३म् हम एक बहु प्रचारित विचार को पढ़ रहे थे जिसमें कहा गया है ‘ईश्वर में आस्था है तो मुश्किलों

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ऋषि दयानद ने सबको वेदों और मत-मतान्तरों का अध्ययन कर असत्य छोड़ने का परामर्श दिया

ओ३म् मनुष्य के जीवन की आवश्यकता है सद्ज्ञान की प्राप्ति और उसको धारण करना। बिना सद्ज्ञान के उसका जीवन सही

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पृथिवी आदि लोकों का आकाश में भ्रमण का सिद्धान्त वेदों की देन है

ओ३म् महर्षि दयानन्द ने ईश्वर प्रदत्त ज्ञान चार वेदों की भूमिका स्वरूप जिस ग्रन्थ का निर्माण किया है उसका नाम

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ऋषि दयानन्द की ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ने वेदों का विस्तृत परिचय कराया

ओ३म् सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने वनस्पति जगत सहित पृथिवी पर अग्नि, जल, वायु, आकाश आदि पदार्थ प्रदान किये

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ईश्वर एक सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक तथा सर्वान्तर्यामी सत्ता है

ओ३म् हमारा यह संसार एक सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, अनादि, नित्य तथा सर्वशक्तिमान सत्ता से बना है। ईश्वर में अनन्त गुण हैं।

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