Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्यों के दो प्रमुख आवश्यक कर्तव्य सन्ध्या एवं देवयज्ञ अग्निहोत्र

ओ३म् मनुष्य एक मननशील प्राणी है। इसके पास विचार करने तथा सत्य व असत्य का निर्णय करने के लिए परमात्मा

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हमें मनुष्य जन्म वेदधर्म के पालन तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए मिला है

ओ३म् संसार में बहुत कम मनुष्य ऐसे हैं जो अपने जीवन के उद्देश्य पर विचार करते हैं। यदि वह ऐसा

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मनुष्य का आत्मा कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतंत्र है

ओ३म् हमें ज्ञात है व ज्ञात होना चाहिये कि संसार में तीन अनादि व नित्य पदार्थों का अस्तित्व है। यह

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समस्त जड़ चेतन सृष्टि को परमात्मा ने जीवों के लिये बनाया है

ओ३म् हमारा यह संसार प्रकृति से बना है। प्रकृति की संसार में स्वतन्त्र सत्ता है। इस अनादि व कारण प्रकृति

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जीवन की सफलता वेदों के स्वाध्याय, सद्व्यवहार एवं आचरण में है

ओ३म् हम मनुष्य इस कारण से हैं कि हम अपने मन व बुद्धि से चिन्तन व मनन कर सत्यासत्य का

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क्या इस जन्म से पहले हमारा अस्तित्व था और मृत्यु के बाद भी रहेगा?

ओ३म् हम कौन हैं? इस प्रश्न पर जब हम विचार करते हैं तो इसका उत्तर हमें वेद एवं वैदिक साहित्य

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ईश्वर की उपासना से मनुष्य को क्या लाभ प्राप्त होता है?

ओ३म् मनुष्य कोई भी काम करता है तो वह उसमें प्रायः अपनी हानि व लाभ को अवश्य देखता है। यदि

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परमात्मा ने यह चित्र-विचित्र संसार किसके लिए बनाया है?

ओ३म् हम मनुष्य हैं। परमात्मा ने हमें जन्म दिया है और हमें संसार का ज्ञान कराने के लिये पांच ज्ञान

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ईश्वर हमारा माता, पिता और आचार्य भी है

ओ३म् ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय एवं

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ की रचना क्यों की?

ओ३म् कोई भी विद्वान जिस विषय को अच्छी प्रकार जानता है, उसको लोगों को जनाने व उस ज्ञान व विद्या

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