Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्वाध्याय एवं ईश्वरोपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं

ओ३म् मनुष्य आत्मा एवं शरीर से संयुक्त होकर बना हुआ एक प्राणी हैं। आत्मा अति सूक्ष्म तत्व व सत्ता है।

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

धर्म सत्य गुणों के धारण व वेदानुकूल आचरण को कहते हैं

ओ३म् मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता सद्ज्ञान है जिससे युक्त होकर वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सके और संसार व

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदपथ पर चलकर ही हम दुःखरहित मोक्ष के गन्तव्य पर पहुंच सकते हैं

ओ३म् संसार में अनेक मार्ग हैं जिन पर चलकर मनुष्य इच्छित अनेक लक्ष्यों वा गन्तव्यों पर पहुंचते हैं। इसी प्रकार

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द ने ईश्वर और मातृभूमि के किन ऋणों को चुकाया?

ओ३म् महर्षि दयानन्द सृष्टि की आदि में प्रवृत्त वैदिक ऋषि परम्परा वाले एक ऋषि थे। उन्होंने विलुप्त वेदों का अत्यन्त

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सत्यार्थप्रकाश अविद्या दूर करने तथा विद्या वृद्धि करने वाला ग्रन्थ है

ओ३म् सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1874 में लिखा गया ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने सन् 1883 में इसको संशोधित

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्कूली शिक्षा विद्यार्थियों में नैतिक गुणों को विकास करने में अक्षम है

ओ३म् किसी भी देश की उन्नति, सुरक्षा व सामथ्र्य उसकी युवा पीढ़ी के नैतिक व चारित्रिक गुणों पर निर्भर करती

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

संसार का ईश्वर के एक सत्यस्वरूप पर सहमत न होना कल्याणकारी नहीं

ओ३म् हमारा यह संसार एक अपौरुषेय सत्ता द्वारा बनाया गया है। वही सत्ता इस संसार को बनाती है व चलाती

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आत्मा की उन्नति के बिना सामाजिक तथा देशोन्नति सम्भव नहीं

ओ३म् मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनन का अर्थ सत्यासत्य का विचार करना होता है। सत्यासत्य के विचार करने

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विश्व की सभी अपौरुषेय रचनायें ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण हैं

ओ३म् अधिकांश मनुष्यों को यह नहीं पता कि संसार में ईश्वर है या नहीं? जो ईश्वर को मानते हैं वह

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द वेद, योग तथा ब्रह्मचर्य की शक्तियों से देदीप्यमान थे

ओ३म् ऋषि दयानन्द संसार के सभी मनुष्यों व महापुरुषों से अलग थे। उनका जीवन वेदज्ञान, योग सिद्धि तथा ब्रह्मचर्य की

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