Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर सभी मनुष्यों द्वारा वेदमन्त्रों सहित उनमे निहित भावों से स्तुति व उपासना का पात्र

ईश्वर संसार के सभी लोगों द्वारा स्तुति का पात्र है। ऐसा क्यों है? इसका उत्तर है कि उसने जीवों को

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

महाभारतकाल के बाद ऋषि दयानन्द ही ने सर्वप्रथम सर्वांगीण सद्धर्म का प्रचार किया

धर्म सत्याचरण को कहते हैं। इसके लिए मनुष्य को व्यापक रूप से सत्य व असत्य का ज्ञान होना आवश्यक है।

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द की स्वदेश सहित विश्व के सभी मनुष्यों को देन

महाभारत काल के बाद से लेकर वर्तमान समय तक यदि हम संसार के महापुरुषों पर दृष्टि डालें तो हमें ऋषि

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वैदिक धर्म ही धर्म है और इतर विचारधारायें मत-मतान्तर, पंथ व सम्प्रदाय हैं

संसार में अनेक मत-मतान्तर हैं परन्तु सब अपने आप को धर्म की संज्ञा देते हैं। अंग्रेजी भाषा में धर्म का

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सृष्टि रचना का उद्देश्य जीवों को भोग व अपवर्ग प्रदान कराना

ओ३म् मनुष्य चेतन प्राणी है। मनुष्य का शरीर पंच भौतिक तत्वों से बना है। पृथिवी (सूर्य, चन्द्र, सभी ग्रह व

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देश और समाज को अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले आदर्श महापुरुष ऋषिभक्त स्वामी श्रद्धानन्द

ओ३म् महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में जिस प्राचीन वैदिक कालीन गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति का विवरण प्रस्तुत किया था उसे साकार

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्वाध्याय करने से ज्ञान प्राप्ति सहित आत्मिक व सामाजिक उन्नति

ओ३म् मनुष्य की आत्मा अनादि, नित्य, अविनाशी एवं अमर है। एकदेशी होने से यह अल्पज्ञ है। हमें नहीं पता कि

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदों की अनमोल देन सब सुखों का आधार अग्निहोत्र यज्ञ

ओ३म् वैदिक मान्यता के अनुसार मनुष्य जीवन चार आश्रमों में विभाजित है। ये आश्रम हैं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्मविज्ञान

सृष्टि में क्रमबद्धता प्रभुसत्ता-सम्पन्न विश्वात्मा के बिना सम्भव नहीं

स्वामी विद्यानन्द सरस्वती आर्यसमाज के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपका जीवन अनुकरणीय था। आपने अपनी आत्मकथा ‘‘खट्टी मीठी यादें”

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्मविज्ञान

सृष्टि की उत्पत्ति का कारण और कर्म-फल सिद्धान्त

ओ३म् हम इस विश्व के अनेकानेक प्राणियों में से एक प्राणी हैं। यह विश्व जिसमें असंख्य सूर्य, पृथिवी व चन्द्र

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