लघुकथा : भूल सुधार
प्रताप सिंह अपने 12 बर्षीय बीमार बेटे को डॉक्टर को दिखाकर, दवाई लिए लौट रहे थे l अँधेरा गहरा चला
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Read Moreपड़े रहते हैं स्थिर किसी नाले या खड के पानी में पंक्तिवद्ध पत्थर लड़ते हैं हर बार बहाव के आवेग
Read Moreबजूद खोते जा रहे हैं पोखर बुजुर्गों की दूरदर्शी सोच के परिचायक जिनका होना प्रतीक था खुशहाली और समृद्धि का
Read Moreदूर सियाचिन के ग्लेशियरों से जब भी आती थी फौजी दोस्त की चिठ्ठियाँ मीलों के फासलों के दरम्याँ भी ख़त
Read Moreखड़ी है उपेक्षित अवस्था में वह बड़े दांतों वाली मशीन कुछ ही दूरी पर परियोजना स्थल से l न जाने
Read Moreतथाकथित कुछ नेता उभरने लगे हैं आज जैसे उग आते हैं बरसाती मौसम में घातक विषैले ‘खूख’ स्वतः ही l
Read Moreफलसफा जिंदगी का न बदल पाया कभी इस रात – दिन की कशमकश से न उभर पाया कभी l
Read Moreविचारों का द्वन्द तो सनातन सत्य है मगर जिस भूमि में लिया है जन्म पले – बढ़े हो जिसके अन्न
Read Moreपिछले दिनों दिल्ली के जेएनयू प्रकरण ने जहाँ देश की अखंडता को चुनौती दी है तो वहीँ दुसरी ओर हरियाणा
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