देह भर शोर…
पहला पड़ाव है मन जहां आकर ठहरती है कुछ पल को कामनाएं, प्रार्थनाएं—। मन उगाता है पेड़ कि जिसकी छाया
Read Moreपहला पड़ाव है मन जहां आकर ठहरती है कुछ पल को कामनाएं, प्रार्थनाएं—। मन उगाता है पेड़ कि जिसकी छाया
Read Moreठहर जाने से खत्म नहीं हो जाते रास्ते…थक कदम गए…रास्ते नहीं । हर छूटते मील के पत्थर को देखना…खुद को
Read Moreतुमने जोसुई-धागा दिया था सितारे टाकने को…उससे मैने अपनी उदासी की उधड़ी चादर टांक लीकोई क्योंकर जान पाएउदासियों के पीछे कौन रहता
Read Moreविवाह के सोलह साल बादसोचती है श्यामलीकभी सहमती नहीं ली गई उसकीदेह उसकी थी देहपति दूसरा…सहमति नहीं ली गई उसकीजब
Read Moreहवाओं से रगड़ खा खा करछिल गए कन्धेहथेलियों पर बादल टिका कभी नहीं टिकाआँखे धूल सने आसमान परजहाँ ना कोई
Read Moreकुआं है , पानी हैगहरा , बहुत गहरा गहराई कुएं की नहीं , पानी की हैयह पहली बात है…पत्थर फेंकते हुए
Read Moreसधे हाथों से थाप थाप कर देता है आकारगढ़ता हैं घड़ा गढ़ता हैं तो पकाता हैंपकाता है तो सजाता हैसज जाता है
Read Moreसमझ आते आते ही आया तुम्हारा प्रेम…। परिंदों से प्रेम करते हुए पिंजरे खरीद लाए… हिरण जंगल से बाड़े में
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