कविता
जिस दिन चांद की रोशनी ज्यादा होती है, उसी दिन उसका दाग ज्यादा चमकता है। चाँद अक्सर सोचता है, इस
Read Moreसबकी आँखें भीगी-भीगी लगी है, आज मेरे देश में! लगता है, सरहद पे कहीं लहू बरसा है। बेवा की बस्ती
Read Moreछोड दी जिंदगी को, वक्त के हवाले; आधी पढ़ के, जैसे कोइ किताब! बहे गया प्रवाह, सरलता की सरिता
Read Moreकोई दिवाना कहेता है,कोई मस्ताना कहेता है। मगर मेघ की फरियाद को,बस मयूर समझता है! नजदीक तो हैं हम यहाँ,जिस्मों
Read Moreमैं कैसे मनाऊँ दिवाली? जब वो खेल रहे है होली! मैं कैसे पटाख़े जलाऊँ? जब वो खून से बना रहे
Read Moreकल – ए-बारिश तुझे बरसना है तो, दिल खोल के बरस, यूँ बूँद-बूँद कर तड़पाया मत कर, भीगना चाहता हूँ
Read Moreझुकता नहीं हूँ मैं उन मंदिर और मस्जीद में! जहाँ जाते हैं सब बेवजह कुछ माँगने। देते तो हैं नहीं
Read Moreमैं फिर से इस जहाँ में आऊँगा! मैं प्यार के तेल से दीप जलाऊँगा, अंधियारे रिश्तों को रोशन करुँगा, बिछड़
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