तडप रहा है मन
मेरा तडप रहा है तन में लगी है आग सूनी है फूलवारी सूना है मन का बाग। रोज मुंडेरे पे
Read Moreमेरा तडप रहा है तन में लगी है आग सूनी है फूलवारी सूना है मन का बाग। रोज मुंडेरे पे
Read Moreकहाँ छिपी है काली बदरिया… आसमां ! काले बदरा को कहाँ छिपाकर रखा है । न उमड़ता है न घुमड़ता
Read Moreबिल्कुल फल्गु सा है मेरा दिल । अपनी वेदना है फल्गु की तो मैं भी भरा पड़ा हूँ वेदनाओं से
Read Moreसुन रहे हो न उस वैधव्य की करूण पुकार जिसका छूटा नहीं अब तलक मेंहदी का रंग लेकिन उजड़ गया
Read Moreहे नाग ! तू मौन रह कर क्या कुछ नहीं करता इंसानों के लिए । लेकिन तू आज भी है
Read Moreपार्क में अकेला बैठा हूँ बिलकुल तनहा स्मृतियाँ, हिचकोले खा रही हैं । याद है ! हम-तुम बैठे थे यहीं
Read Moreभरे पड़े हैं दादी माँ की संदूक में एक, दो से लेकर पांच निया के सिक्के । कभी पूछ थी
Read Moreमौत की दहलीज पर खड़े वृद्ध ने कहा-अपने पुत्र से । तुम्हें देने को कुछ नहीं मेरे पास सदा रोटी
Read Moreअक्सर सार्वजनिक शौचालय में कतराती हूँ जाने से । ओछी मानसिकता और स्त्री के प्रति तुम्हारी भावना जो तुम अभिव्यक्त
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