कविता : कृषक
क्यों न जाती सबकी राह तुम तक क्यों न आती तेरी आह हम तक सीचं सीचं कर धरती , जीवन
Read Moreक्यों न जाती सबकी राह तुम तक क्यों न आती तेरी आह हम तक सीचं सीचं कर धरती , जीवन
Read Moreलहराता है जब पीत-दल धरा जब ले अंगड़ाई पुलकित होते उपवन जब लेकर मानस की गहराई देखो ! बसंत ऋतू
Read Moreबीत गयी सुहानी बेला क्या लिखूं क्या गाऊं छुट गया हर किनारा मुझसे इस जिदगी का, अब ठौर कहाँ मै
Read Moreहर पल वेदना सहती रहती थी, अब न रोकूंगी खुद को आली बात करुँगी , बात करुँगी , उनसे ह्रदय
Read Moreबनारस की इन राहों में वेदना की विकल बाँहों में चल रहा मैं अनजान बेसहारा ग्रीष्म की दहकती दाह में
Read More