लघुकथा —धन्धा आत्म सम्मान का
“क्या कहा 500 रूपये… एक बार की परिक्रमा के वो भी… रिक्शे में सिर्फ बच्चे को ही बैठना है,, हम
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Read Moreझरने से शुरू होकर अपने आप मे अनगिनत धाराओं को समेटे, बिना थके, बिना रूके अपनी मौज में बहना जानती
Read More“माँ जैसे बुआ ने कोर्ट की धमकी देकर पापा से अपना हिस्सा मांग लिया आप भी मामा से अपना हिस्सा
Read Moreबहुत भाती थी दामिनी को हरी भरी चूड़ियाँ… बहुत खुश थी हाथों में भरी चूड़ियों को देखकर। नाजुक चूड़ियां कब
Read More“माँ लेकिन कब तक सहन करूँ, जब भी जयादा बात बड़ती है तो ये हर बार हाथ उठा देते हैं,,
Read Moreकॉलेज कैम्पस में घुसते ही वहां का नजारा देख दामिनी की गुस्से से दोनों मुटठीयां भींच गई। कुछ मनचले, बिगड़ैल
Read More“एक तो बेटी उपर से एक किडनी नही, साला किस्मत ही खराब है, पता नही आगे क्या क्या दिन दिखायेगी ये,
Read More15 साल की बेटी को छोड़कर जब विनेश गया था, तब दीपक ही उसकी बेरंग जिंदगी मे रंग भरने आया
Read Moreट्रेन अपनी गति से आगे बढ रही थी पर सुमित की धडकन ट्रेन से भी तेज चल रही थी। “क्या
Read Moreप्रशान्त के छोटे भाई की शादी में आये मंत्री जी को सभी घेर कर बैठे हुये थे, कोई सेल्फी ले
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