इंसानियत — एक धर्म ( भाग — पंद्रहवां )
असलम से मिलकर राखी के साथ वकिल साहब पुनः अपने दफ्तर में लौट आये जो कचहरी से ही लगा हुआ
Read Moreअसलम से मिलकर राखी के साथ वकिल साहब पुनः अपने दफ्तर में लौट आये जो कचहरी से ही लगा हुआ
Read Moreअस्पताल से कचहरी की तरफ बढ़ रही राखी के मन में विचित्र सा अंतर्द्वंद चल रहा था । बेचैनी स्पष्ट
Read Moreराखी पता नहीं कितनी देर तक यूँ ही बैठी रही और दिमाग के हवाई घोड़े दौड़ाती रही लेकिन उसे कोई
Read Moreसुबह लगभग ग्यारह बज चुके थे जब राखी कचहरी परिसर में पहुंची थी । परिसर में लोगों की आवाजाही शुरू
Read Moreसेठ धनीराम का इकलौता पुत्र एक बार गंभीर बीमार पड़ा । गांव के डॉक्टर मुखर्जी ने उसके बचने की गुंजाइश
Read Moreधनराज जी अपने बड़े सुपुत्र के लिए लड़की देखने आए हुए थे । मानसी को देखते ही उन्होंने उसे अपने
Read More” हाँ रमेश ! उस इंसानियत के पुजारी का नाम असलम ही है । ” राखी हैरान हो रहे रमेश
Read Moreआज हरिया बहुत खुश था । आज बड़े दिनों बाद बड़े जुगाड़ से उसकी पदोन्नति हुई थी । उसके साथी
Read Moreपंडित आज्ञाराम के बेटे और बहू अपने पांच वर्षीय पुत्र दीपू के साथ मेले में घुम रहे थे । बहू
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