ग़ज़ल : आग दरिया मे’भी लगा देना
बहर २१२२ १२१२ २२ काफ़िया- आ रदीफ़- देना ख्वाब आए नहीं जगा देना। प्यास दिल की मिरे बुझा देना। रात
Read Moreबहर २१२२ १२१२ २२ काफ़िया- आ रदीफ़- देना ख्वाब आए नहीं जगा देना। प्यास दिल की मिरे बुझा देना। रात
Read Moreकतरा-कतरा पिघल रही हैं आहें तेरी यादों की , जी चाहे साँसों में भर लूँ खुशबू तेरी चाहत की। टकरा
Read Moreहमेशा की तरह आज भी सौतन बनी घड़ी ने सनम के आगोश में मुझे पाकर मुँह चिढ़ाते हुए दस्तक दी।
Read Moreशिव महिमा”पर दोहे द्वादश लिंग बिराजते, पावन तीरथ धाम। आग नयन विष कंठधर, त्रिपुरारी प्रभु नाम।। फागुन चौदस रात को,बिल्वपत्र
Read More“त्रिपुरारी दूल्हा बने” (कुंडलिया छंद) त्रिपुरारी दूल्हा बने,स्वागत नगरी आज। आए हैं बारात ले, भस्मी तन पर साज।। भस्मी तन
Read Moreआज मैं आपको भोले की नगरी काशी की शिव बारात से रू-ब-रू कराती हूँ ,जिसमें शिवजी भस्मी रमाये दूल्हा बनकर
Read More(9)प्रीत लगी जब साजन से तब नैंनन नींद सखी नहि भाए । चातक के सम राह तकूँ नित आवत रात
Read Moreसहधर्मिणी, संस्कारिणी, नारायणी की प्रतीक नारी की महत्ता को शास्त्रों से लेकर साहित्य तक सर्वदा स्वीकारा गया है।”यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते
Read Moreप्रियतम मेरे प्राची उदित भानु से प्रमुदित, जीवन में तुम आए थे। स्वर्ण कलश की आभा लेकर, प्रीत बसा मन
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