मानव के धुप
जिंदगी बेजुबान होती जा रही है, काया लहूलुहान होती जा रही है। मानव के धूप में जिए तो कैसे जिए,
Read Moreजिंदगी बेजुबान होती जा रही है, काया लहूलुहान होती जा रही है। मानव के धूप में जिए तो कैसे जिए,
Read Moreहैवानियत की चश्मा जिनके आँखों पर होगा उन्ही लोगो के वजह से मानव शर्मसार होगा भारत में बढती आबादी
Read Moreरो रहा है देश मेरा आँसू पोछनी चाहिए देश के अंदर फिर से क्रांति चलनी चाहिए। चारो तरफ लूट मार
Read Moreचल रहे हम किधर खुद ही नहीं पता है मानव विनाशलीला खुद ही खोद रहा है। चलती है मेरी नैया
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