तेरी याद
सूरज जब आँखें भी नहीं खोलता और मेरे छत के मुंडेर पर जब नन्ही चिड़िया चहचहाती है ना जाने क्यूँ
Read Moreअच्छी तरह याद है इतवार था उस दिन… कबाड़ी वाले की आवाज गली में गूंज रही थी घर के कबाड़
Read Moreमेरी कविता ‘ऐ ज़िंदगी’ की शृंखला में अगली कड़ी…. ऐ ज़िंदगी आज देखा तुझे घने कोहरे के बीच अर्धनग्न घूमते
Read Moreगुज़रा साल कुछ ऐसे आया जैसे सोच की कड़ी बीच से टूट गई हो जैसे समझने की शक्ति खत्म होती
Read Moreबस एक शब्द तुम्हारे प्यार का… महज भावनाओं से ओत-प्रोत ‘भावनाओं’ के हीं उद्बेग में कहे गये थे शायद… मगर
Read Moreगुज़रा साल कुछ ऐसे आया जैसे सोच की कड़ी बीच से टूट गई हो जैसे समझने की शक्ति खत्म होती
Read Moreचौखट भी…दर भी…दीवार भी औरत… आते जाते ठोकरों की मार है औरत… ज़िंदगी के हर रिश्तों का किरदार है निभाया…
Read Moreतकरीबन 15 रोज हो गए हमारे बीच कोई बातचीत नहीं हुई, यूँ तो ज़िंदगी ऊपर से बिलकुल सहज है मगर
Read More