कविता माँ मुझे…
माँ मुझे तेरा, ही गान लिखना है। गुमशुदा स्वाभि- मान लिखना है। अंगार उगलते है, दृग दृष्टि में- व्यभिचारी का,
Read Moreमाँ मुझे तेरा, ही गान लिखना है। गुमशुदा स्वाभि- मान लिखना है। अंगार उगलते है, दृग दृष्टि में- व्यभिचारी का,
Read Moreकरवटें बदलते-बदलते आधी रात गुजर गई। लगता था जैसे निंद्रा रानी रूठ कर घर की देहलीज पर बैठ गई हो।
Read Moreकन्हैया जी अकेले बैठे हैं। घर मे सारी सुख-सुविधा है। दो बेटे, एक नई नवेली पुत्र बधू भी है। सभी
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