गीत – श्रमिक जीवन
कब जीवन है सुखद सरल सा , कठिनाई में ढलना है। शीष धार लकड़ी का गठठर ,तीव्र वेग से चलना
Read Moreकब जीवन है सुखद सरल सा , कठिनाई में ढलना है। शीष धार लकड़ी का गठठर ,तीव्र वेग से चलना
Read Moreकरें व्यथित मन के भावों को ,पीर हृदय की जब पढ़ते हैं । बह जाते है अनायास ही ,आँसू जब
Read Moreतनी अँगुलियाँ चढ़ी भृकुटियां, अरु तानों को सहती थी। बहुत सोचती प्रति उत्तर दूं, किंतु मौन ही रहती थी। संस्कार
Read Moreदुग्ध पिलाकर अपने उर का ,आँचल बीच समा लेती हो । अपने हाथों से सहलाकर ,मन की थकन मिटा देती
Read Moreसमय चुनावों का आया तो ,नेता हरकत में आते । भोली भाली जनता से फिर ,वादे सौ- सौ कर जाते
Read Moreयही मेरी शुभकामनाएं ,नव वर्ष बहुत आनन्दित हो । फैला उजास हो खुशियों का ,अरु हृदय सदा प्रसन्नचित हो ।
Read Moreनमो नमो है माता दुर्गे ,तेरी जय जयकार । सिंह वाहिनी मात भवानी ,वन्दन बारम्बार ।। तुम ही सृजन रूप
Read Moreमन रूपी घट बसे साँवरे,फिर भी तृष्णा रही अधूरी । जैसे वन वन ढूँढ़ रहा मृग ,छिपी हुई मन में
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