कविता
सुनो ! शाखाएं सदैव जाती है ऊपर की ओर जड़ रहती है बंधी धरती से नहीं उखाड़ सकते तुम जड़ो
Read Moreवो बुतसाज मेरे नज़दीक आया मुझे लगा…. अब वो मुझ मे से मुझे तराशेगा…. “आह! कितना सुंदर पत्थर !” मेरे
Read Moreवो रोज़ ही मुझे देख मुस्कुराता,उछलता हाथ चूमता और फिर आगोश मे ले लेता क्योकि वो मेरे रूह और जिस्म
Read Moreखूबसूरत सा वो जाफ़रानी गोला धरा को चूम जैसे ही विदा लेने आता है वृक्षों के झुंड तले टिमटिमाने लगते
Read Moreमै जब अपनी आजादी की चर्चा करती हूँ तो मै सरहदों पर लगी कांटेदार तार को सरकते या टूटते नहीं
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