ग़ज़ल
दर्दे-इंसां को मैंने लिबासे-अदब पहनायाबला की ख़ूबसूरत लगे है बदनाम ज़ुबां मेरी कई बार सोचा कि हम भी ख़ुदपरस्ती सीख
Read Moreहमारे अपने सामने, इंटरनैट के इस युग में, हम देख पा रहे हैं कि वक्फ़ बोर्ड ने किस तरह प्रपंच
Read Moreआरंभ में ही मैं ये बात स्पष्ट कर देना अपना नैतिक कर्तव्य समझता हूँ कि मैं देश का एक सच्चा
Read Moreये उन दिनों की बात है, जब भारत को विभाजित हुए दो-चार बरस ही हुए थे । अधिकांश अंग्रेज़ वापिस
Read Moreसहमत होनाऔर प्रेम करनाबिलकुल अलग बातें हैंसहमत होने से आपकेवल अनुयायी बन पाते हैंजबकि प्रेम करने से‘मनुष्य’ बनने की संभावनाएँसौ
Read Moreबाती जलती हैलेकिन होता है नामकि दीपक जल रहा हैबढ़ती है जड़लेकिन हम कहते हैंकि पेड़ बहुत लंबा हैनींव में
Read Moreमुझसे सारा सागर ले लो प्रेम की धारा बहने दो सारी दौलत छीन लो लेकिन मेरी कविता रहने दो
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