कविता : दर्पण
देखा करो अपने आप को कभी दर्पण में शायद तुम्हें नज़र आएगा तुम्हारा मचलना, देखा करो अपनी आँखों की पुतली
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Read Moreतेरे साथ जो बीता बचपन कितना सुन्दर जीवन था, ख़ूब लड़ते थे फिर हँसते थे कितना सुन्दर बचपन था, माँ
Read Moreसुनो, तिरंगा मेरे मन की बात तुझे सुनाऊं मैं, तू है मेरे देश की शान यह सबको बतलाऊं मैं, खिल
Read Moreप्रेम और सत्य दोनों ही ढाई अक्षर के शब्द हैं… कितने सुन्दर कितने पवित्र हैं ये शब्द, जो ह्रदय से
Read Moreमैं अंजान हूँ इस सफ़र में मुझे कुछ नहीं है आता तू ही बता मेरे साथी कैसे बढूँ इस डगर
Read Moreमैं बेटी हूँ फिर भी मैं अकेली हूँ मैं सबकुछ नहीं कर सकती क्योंकि मैं बंधन में बंधी हूँ किसी
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