कविता
नीरजा के सलिल तट पर, गा रहा पंछी अकेला! नहीं कोई दुःख जहाँ पर,नहीं है कोई झमेला । दूर तक
Read Moreओ मांझी अपने जीवन की, गिरी हुई पतवार सम्भालो। दीख रहा है दूर किनारा, किन्तु झूमते तुम मस्ती में।
Read Moreएक दीपक जल रहा था, साधना के कठिन पथ पर। वह निराश्रित जल रहा था , वह उपेक्षित था सभी
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