ग़ज़ल –कुछ तुम झुको कुछ हम झुकें
आते तो सभी अकेले हैं इस दुनिया में और जाते भी अकेले ही हैं , पर आने व जाने के
Read Moreआते तो सभी अकेले हैं इस दुनिया में और जाते भी अकेले ही हैं , पर आने व जाने के
Read Moreलक्ष्मी गणपति पूजिए, पावन पर्व महान , बाढ़े विद्या बुद्धि धन, मानव होय सुजान. हिया अंधेरौ मिटि रहै, जागै
Read Moreएक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल | यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल | संभूति च
Read Moreहिन्दी की ये रेल न जाने, चलते चलते क्यों रुक जाती | जैसे ही रफ़्तार पकडती, जाने क्यूं धीमी हो
Read Moreस्वतन्त्रता के आन्दोलन के साथ हिन्दी की प्रगति का रथ भी तेज़ गति से आगे बढ़ा और हिन्दी राष्ट्रीय चेतना
Read Moreआस्थाएं , धर्म की,ज्ञान की या कर्म की; मानव ही बनाता है। सम्यगज्ञान,सम्यग दृष्टिकोण ,सम्यग भाव , एवं सम्यग व्यवहार
Read Moreअगीत कविता विधा महाप्राण निराला से आगे मुक्त अतुकान्त छ्न्द की नवीन धारा है, जिसने सन्क्षिप्तता को धारण किया है;
Read Moreटूट्ते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है .हैरान सी नज़रों में ये अक्स यहां क्यों है। दौडता नज़र
Read Moreमेरे द्वारा सृजित, गीत की एक नवीन -रचना-विधा -कृति में ..जिसे मैं ….‘कारण कार्य व प्रभाव गीत‘ कहता हूँ ….इसमें
Read Moreधरती का इतिहास वास्तविक रूप में भारतवर्ष का इतिहास ही है | सृष्टि, मानव व मानवता वहीं से प्रारंभ हुई,
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