लघुकथा : फिक्र
“चलो न माँ हमारे साथ सरगुजा। एक साथ रहेंगे हम सब। मेरी नौकरी ऐसी है कि मैं तुम्हें मिलने बार-बार
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Read Moreलेबररूम से बाहर निकलते ही डाॅ. सुबोध मरकाम जी बोले- “भरत लाल ! बधाई हो। तुम बाप बन गये। अंदर
Read Moreइस बार ओड़गाँव के गाँधीपारा के बच्चों को होली का बेसब्री से इंतजार था। सबने
Read More“ओ मैनाबाई…! एक नहीं, आज डेढ़ किलो तौल दो। मेहमान आये हैं हमारे यहाँ।” रामरुज मैनाबाई
Read Moreबहुत पुरानी बात है। एक वनांचल गाँव था पण्डेल। गाँव से ही बिल्कुल लगा हुआ
Read Moreअध्यापक ठाकुर जी कक्षा सातवीं में आए। बोले- “बच्चों ! कल से दशहरे की छुट्टी
Read Moreउस दिन खुशियाँ पंखुड़ियों की तरह बिखर गयी थीं घर भर; आखिर क्यों नहीं…? शादी के तेरह वर्षों की प्रतीक्षा
Read Moreपिता के देहावसान के बाद संजय की स्थिति बद से बदतर हो गयी थी। घर-परिवार,
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